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समाज में बढ़ती अराजकता का कारण है हमारी कायरता

  • Writer: Man Bahadur Singh
    Man Bahadur Singh
  • Dec 31, 2020
  • 3 min read

Updated: Jun 13, 2024

*पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया..।।*

*और*

*जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध किया..।।*

*फलस्वरूप*

*एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद..।।*

*क्योंकि*

*वेद कहता है-क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है,जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए..।।*

*एवम*

*सहनशीलता भी तब पाप बन जाता है,जब वह धर्म और मर्यादा को बचा नहीं पाता है..।।*


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अब समय आ गया है कि बालिकाओं औंर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वाले अपराधियों के साथ साथ उनके परिवार वालों के विरूद्ध भी कठोरतम कार्रवाई का प्रावधान किया जाए।


वह मां बाप, जो अपने बेटों को बालिकाओं और महिलाओं का सम्मान करने का संस्कार नहीं दे सके, बड़े, छोटे, बुजुर्ग, बिमार, असहाय, लाचार के प्रति सम्यक व्यवहार की सीख नहीं दे सके, उनकी भी जिम्मेदारी तय किए जाने का कानून बनाया जाना चाहिए।


सामाजिक स्तर पर ऐसे अपराधियों और उनके परिवारों का सम्पूर्ण बहिष्कार होना चाहिये। सरकार, पुलिस और प्रशासन का इकबाल समाप्त होता जा रहा है। परम्परागत सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति और संस्कार आखिरी सांसें ले रही हैं। हर व्यक्ति, संस्था और समाज एक दूसरे पर उंगलियां उठा रहा है, लेकिन आत्मावलोकन कोई नहीं कर रहा है।


डा. प्रियंका रेड्डी के साथ घटित जघन्य घटना से आज भी पूरा देश व्यथित व विचलित है। देश की बेटियों व महिलाओं के साथ नित्य प्रति होने वाली घटनाएं देश का सीना छलनी कर रही हैं और हम पुलिस, प्रसाशन व सरकारों को कोसते हुए दो चार दिन पुतले जला कर व कैन्डल मार्च निकाल कर एवं सम्वेदनाएँ व्यक्त करने के बाद घर बैठ जाते हैं।


घटनाएं रूक नहीं रही हैं। पूरा देश समीक्षा करने में लगा है। सब लोग सिस्टम को कोस रहे हैं। मेरा मानना है कि इसके लिए सबसे अधिक कोई जिम्मेदार है तो वह है समाज यानि आप और मैं। अब वक्त आ गया है कि हम इसकी नीर क्षीर विवेचना करें और जिम्मेदारी ले।


इसके लिए जिम्मेदार है हमारा कायर समाज। और कायर समाज को विलाप करने का कोई अधिकार नहीं है।देखा जाए तो ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के हरामी हर नुक्कड़, चौराहों और गलियों में फालतू घूमते रहते हैं, खड़े रहते हैं, बीड़ी सिग्रेट पीते रहते हैं, लेकिन हम कभी विरोध नहीं करते, कभी उन्हें नहीं ठोकते। हमारी कायरता के कारण उनका मनोबल बढ़ता जाता है और फिर ऐसी घटनाएं होती है।


जब तक हम ऐसे अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के विरुद्ध साहस पूर्वक खडे नहीं होंगे, ऐसी घटनाएं नहीं रूकेगी। हम दिल्ली, उन्नाव, हैदराबाद और अब हाथरस की घटना के बाद दो दिन के लिए आन्दोलित होते हैं और फिर अगली नृशंस घटना होने तक के लिए शान्त हो जाते हैं। एक समाज के तौर पर, एक राज्य के तौर पर और एक गणतंत्र के रूप में आखिर हम जा कहाँ रहे हैं, यह सोचने, समझने और कुछ करने का वक्त है।


जिन्दा कौमें अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए पुलिस, प्रशासन की मोहताज नहीं हो सकतीं।

क्या हम और आप अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं ? नहीं। शुरुआत अपने से करनी होगी। एक नागरिक के तौर पर, एक समाज के तौर पर जब तक हम इसके लिए प्रतिबद्ध नहीं होंगे, तब तक हम अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा और सम्मान को नहीं बचा पाएंगे।


आज हर गली, चौराहे और नुक्कड़ पर अवारा किस्म के 4-6 हरामी खड़े रहते हैं। हम जानते हैं और देखते हैं कि वह आपस मे अभद्र और गाली गलौज की भाषा में बात करते रहते हैं। हम आप सभी जानते हैं कि वह आती जाती महिलाओं पर भी टिप्पणी करते हैं। हम यह भी जानते हैं कि यही आवारा किस्म के लोग आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। हो सकता है कि इसमें आपके और हमारे परिवार के भी बच्चे हों।


लेकिन हम और आप कभी इनसे यह नहीं पूछते कि वह इस नुक्कड़ पर चौराहे पर या गली में क्यों खड़े हैं।

हम ऐसे आवारा तत्वों से डरते हैं कि फालतू क्यों इनसे पंगा लें। क्यों अपनी शांति भंग करें। किसी के साथ कोई घटना भी होती है तो हम उसकी मदद के लिए आगे नही आते। मुर्दा समाज मे यही सब अत्याचार, अनाचार और दुराचार होता है और होता रहेगा, जब तक हम इसके खिलाफ खड़े नहीं होंगे। इसकी शुरुआत अपने गली, मोहल्ले, चौराहे और नुक्कड़ से करिए। दूसरे की बहन बेटी का सम्मान करिए। उनकी मदद के लिए तैयार रहिए। हर कोई यदि यह संकल्प ले ले, तभी इसका समाधान होगा।


जिन्दा कौमें पुलिस प्रशासन की मोहताज नहीं हो सकतीं।

 
 
 

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